Life and Ideas of Revolutionary Bhagat Singh and his Associates

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Tuesday, October 4, 2011

Mirza galib sahib Ka Ek aur ashrar Jo Shaheed Bhagat Singh ko itna pasand tha kai jail kothri main bhee pass rakhe the


ya rab wo na samjhe hain na samajhenge meri bat
de aur dil un ko jo na de mujhko zuban aur

या रब वो न समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
दे और दिल उनको जो न दे मुझको ज़ुबाँ और

The complete Gazal by 
hai bas k har ik un k ishare mein nishan aur
karte hain muhabbat to guzarta hai guman aur
ya rab wo na samjhe hain na samajhenge meri bat
de aur dil un ko jo na de mujhko zuban aur
abaru se hai kya us nigah -e-naz ko paiband
hai tir muqarrar magar us ki hai kaman aur
tum shahar mein ho to hamein kya gam jab uthenge
le ayenge bazar se jakar dil-o-jan aur
har chand subukdast hue butshikni mein
ham hain to abhi rah mein hai sang-e-giran aur
hai khun-e-jigar josh mein dil khol k rota
hote kai jo dida-e-khunnabafishan aur
marta hun is awaz pe har chand sar ur jaye
jalad ko lekin wo kahe jaye k han aur
logon ko hai khurshid-e-jahan tab ka dhoka
har roz dikhata hun main ik dag-e-nihan aur
leta na agar dil tumhen deta koi dam chain
karta jo na marta koi din ah-o-fugan aur
pate nahi jab rah to char jate hain nale
rukti hai meri taba to hoti hai rawan aur
hain aur bhi duniya mein sukhanawar bahut ache
kahte hain ki 'Ghalib' ka hai andaz-e-bayan aur


है बस कि हर इक उनके इशारे में निशाँ और
  करते हैं मुहब्बत तो गुज़रता है गुमाँ और 
या रब वो न समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
  दे और दिल उनको जो न दे मुझको ज़ुबाँ और
आबरू से है क्या उस निगाह -ए-नाज़ को पैबंद
  है तीर मुक़र्रर मगर उसकी है कमाँ और
तुम शहर में हो तो हमें क्या ग़म जब उठेंगे ले आयेंगे
बाज़ार से जाकर दिल-ओ-जाँ और
हरचंद सुबुकदस्त हुए बुतशिकनी में हम हैं
तो अभी राह में है संग-ए-गिराँ और
है ख़ून-ए-जिगर जोश में दिल खोल के रोता
  होते कई जो दीदा-ए-ख़ूँनाबफ़िशाँ और
मरता हूँ इस आवाज़ पे हरचंद सर उड़ जाये
  जल्लाद को लेकिन वो कहे जाये कि हाँ और
लोगों को है ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब का धोका हर
रोज़ दिखाता हूँ मैं इक दाग़-ए-निहाँ और
लेता न अगर दिल तुम्हें देता कोई दम चैन करता
जो न मरता कोई दिन आह-ओ-फ़ुग़ाँ और
पाते नहीं जब राह तो चढ़ जाते हैं नाले
रुकती है मेरी तब'अ तो होती है रवाँ और
हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और

Hindi version with meaning

है बस के हर इक उनके इशारे में निशाँ औ
करते हैं मोहब्बत तो गुज़रता है गुमाँ और  

उनकी जानिब से इशारे तो ज़रूर होते हैं, लेकिन उन इशारों का मतलब समझना 
 बहुत मुश्किल है। इसलिए जब वो मोहब्बत करते हैं तो भी हमें यक़ीन नहीं 
होता के क्या ये वाक़ई हमसे मोहब्बत कर रहे हैं या सिर्फ़ मज़ाक़ किया जा रहा है। 

यारब न वो समझे हैं न समझेंगे मेरी बात
दे और दिल उनको जो न दें मुझको ज़ुबाँ और

ऎ ख़ुदा, वो मेरी बात न अब तक समझे हैं और न आगे समझेंगे, ऎसी मुझे पूरी 
उम्मीद है। इसलिए अगर तू मुझे ऎसी ज़ुबान नही देता जिस में इतना असर हो 
के उन्हें अपनी बात समझा सके तो फिर उनको ही ऎसा दिल देदे जो मेरी बात 
समझ सके।

अबरू से है क्या उस निगहा-ए-नाज़ को पेवन्द
है तीर मुक़रर्र, मगर उसकी है कमाँ और


उनकी आँखों को तीर बरसाना तो ख़ूब आता है। लेकिन इन तीरों की कमान 
अबरू (भवें) नहीं हैं। निगा-ए-नाज़ के तीर तो चलते हैं लेकिन इन तीरों की 
कमान कोई और ही है।

 
तुम शहर में हो तो हमें क्या ग़म जब उठेंगे ले आएँगे
बाज़ार से जाकर दिल-ओ-जाँ और 

तुम्हारे शहर में होने की वजह से दिल-ओ-जान ख़ूब बिक रहे हैं। क्योंके लोग
इनसे बेज़ार हो गए हैं और इन्हें फ़रोख़्त करना चाहते हैं। इसलिए हमें कोई ग़म 
नहीं है अगर हमारे दिल-ओ-जान चले गए हैं तो हम दूसरे ख़रीद लाएँगे।

लोगों को है ख़ुरशीद-ए-जहाँताब का धोकाहर
रोज़ दिखाता हूँ मैं इक दाग़-ए-निहाँ और


मेरे सीने में बेशुमार दाग़ छुपे हुए हैं। सूरज जो रोज़ चमकता हुआ दिखाई देता 
है, दरअसल वो मेरे दिल का एक दाग़ होता है। लोग धोका खाते हैं और इसे 
चमकता हुआ सूरज समझ लेते हैं।  

पाते नहीं जब राह तो चढ़ जाते हैं नाले 
रुकती है मेरी तबआ तो होती है रवाँ और 

पानी बहता रहता है तो बहता रहता है, लेकिन अगर वो रुक जाए या रोक दिया 
जाए तो वो चढ़ जाता है। इसी तरह जब मेरी तबीयत रुकती या रोकी जाती है 
तो उसमें और ज़्यादा रवानी पैदा हो जाती है। 


हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे 
कहते हैं के ग़ालिब का है अन्दाज़-ए-बयाँ और 


दुनिया में तो कई अच्छे अच्छे शायर हैं। लेकिन लोग कहते हैं के ग़ालिब की 
बात  ही कुछ और है। किसी बात को बयान करने का ग़ालिब का अन्दाज़ सबसे 
जुदा, सबसे अलग है। मतलब कई अच्छे अच्छे शायर हैं लेकिन सबसे अच्छा 
शायर अगर कोई है तो वो ग़ालिब है।

3 comments:

  1. mai janta hu ki agar gandhi gi chahte toh wo aapko fansi lagane se bacha lete par aisa nahi kiya janpuchh kar bhrast netao dwara aage likhata rahoonga...........

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  2. e-bhagat gar aaj aap ka sath hota, to aaj ye gulistan un na bikhra hota, luth raha hai har koi mere desh k chen ko, aur aaj fir aap ka khayal aaya. Jai hind dinesh kumar( hindustani)

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